प्रेम मानवीय संवेदनाओं का एक ऐसा पक्ष है जिसके बिना किसी कथा की परिकल्पना नहीं की जा सकती | और ऐसा प्रेम जिसमें पग-पग पर बाधाएं हों, ऐसी कथा को कहने का आनंद केवल लेखक तथा वाचक ही अनुभव कर सकता है | प्रेम तप है, त्याग है, आकांक्षा है | प्रेम सफल हो...
प्रेम मानवीय संवेदनाओं का एक ऐसा पक्ष है जिसके बिना किसी कथा की परिकल्पना नहीं की जा सकती | और ऐसा प्रेम जिसमें पग-पग पर बाधाएं हों, ऐसी कथा को कहने का आनंद केवल लेखक तथा वाचक ही अनुभव कर सकता है | प्रेम तप है, त्याग है, आकांक्षा है | प्रेम सफल हो तो सर्वज्ञ की प्राप्ति है और असफल हो तो सर्वज्ञ का त्याग | मैंने इस उपन्यास में स्त्री पुरुष की इसी संवेदना को उकेरने का प्रयास किया है | मेरा पहला उपन्यास “प्रहरी का वतन और प्रेम” इसी कड़ी का प्रथम प्रयास था | अपने दोनों उपन्यासों में मैंने मानवीय प्रेम की संवेदना और पाने-खोने के द्वन्द का चित्रण करने का प्रयास किया है |मेरी अब तक की लेखन यात्रा में मुझे जिन लोगों ने प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से सहयोग दिया है मैं उन सब का आभारी हूँ | मैं अपनी पत्नी (अंजना) का आभारी हूँ जिसके सानिध्य में मुझे प्रेम का अर्थ समझ आया | मैं आभारी हूँ अपने उन मित्रों का जिन्होंने पग-पग पर मेरा उत्साहवर्धन किया | मैं आभारी हूँ अपने माता पिता (श्रीमती फेटो देवी व श्री चैतराम चौहान) तथा गुरुजनों का जिनके आशीर्वाद और संस्कारों से मैं अपने विचारों को कलमबद्ध कर पा रहा हूँ | और अंत में मैं विशेष आभारी हूँ अपने वरिष्ठ सहकर्मी तथा मार्गदर्शक श्री अजय वर्मा जी का जिन्होंने इस बार भी मेरी इस प्रस्तुति को वास्तविक रूप में लाने में अपना बहुमूल्य सहयोग दिया |जय हिन्द, जय भारत ||