यह कविताएं मोती हैं, उस माला के जो अनंत अस्तित्व ने पहनी है। वो जब गाता है, नाचता है तो यह मोती गिरते हैं, बरसते हैं, पृथ्वि पर और सीधा कवि के हृदय में। पृथ्वि पर गिरें तो बरसात बन जाएं, सूर्य की कोमल किरणें बन जाएं, सुनहरी धूप, लालिमा लिए शाम बन ...
यह कविताएं मोती हैं, उस माला के जो अनंत अस्तित्व ने पहनी है। वो जब गाता है, नाचता है तो यह मोती गिरते हैं, बरसते हैं, पृथ्वि पर और सीधा कवि के हृदय में। पृथ्वि पर गिरें तो बरसात बन जाएं, सूर्य की कोमल किरणें बन जाएं, सुनहरी धूप, लालिमा लिए शाम बन जाएं, ठंडी पुरवैया, नीला आकाश, पेड़ पोधे, पशु पक्षी बन जाएं; और कवि के हृदय पर बरसें तो आनंद-परमानंद बन जाएं, प्रेम, वैराग्य, योग और आत्मज्ञान बन जाएं। जो भीगना जानते हैं, बाहर से और भीतर से, वो भीग जाएं चिदाकाश से बरसती इन कविताओं में।