"अँधेरा होने वाला था और दिन का प्रकाश मन्द पड़ चुका था । लेकिन धीरज की साइकिल की गति तेज़ होती जा रही थी । पुल के बीचों-बीच तक जाकर, साइकिल को बगल करके स्टैंड पर चढ़ाया और प्राकार पर हाथ रखकर खड़ा हो गया । साँसे काबू में आईं, तो नीचे देखा । यमुना नदी ...
"अँधेरा होने वाला था और दिन का प्रकाश मन्द पड़ चुका था । लेकिन धीरज की साइकिल की गति तेज़ होती जा रही थी । पुल के बीचों-बीच तक जाकर, साइकिल को बगल करके स्टैंड पर चढ़ाया और प्राकार पर हाथ रखकर खड़ा हो गया । साँसे काबू में आईं, तो नीचे देखा । यमुना नदी अपनी अलसौंही रफ़्तार से बह रही थी, गम्भीर और गहरी, जैसे युगों से बहती चली आ रही है । दोनों किनारों पर कुछ झोंपड़ियाँ थीं, और रेत पर बच्चे खेल रहे थे । अँधेरे में कुछ मशालें और लालटैन दीख रही थीं । धीरज के मन का बवण्डर थम गया था, और अब मस्तिष्क सुन्न हो चुका था, जैसे किसी भी महान अभियान से ठीक पहले हो जाता है । आती-जाती गाड़ियों का शोर उसे बिल्कुल सुनाई नहीं पड़ रहा था । वह एक कदम ऊपर चढ़ा और अब उसका तीन-चौथाई शरीर हवा में ही था । नीचे पानी में देखा, तो एक शव बहता हुआ नज़र आया ।" शैक्षणिक अर्हता और बुद्धिवाद में सिंचे हुए एक मथुरा-निवासी परिवार का लड़का पढ़ाई-लिखाई से उच्चाटित होकर खेल-कूद में रम जाता है । इससे उसके माँ-बाप पर बिजली-सी गिर पड़ती है । वे उसे समझा-बुझा कर वापस ' अपनी दुनिया ' में लाना चाहते हैं लेकिन स्नेह और सब्र की सीमा जल्दी ही ख़त्म हो जाती है, और फिर रोष व खीझ कटूक्तियाँ बनकर बरसने लगती हैं । लड़का विमुख होकर पृथक हो जाता है और एक अलग दिशा साधते हुए बहुत दूर चला जाता है । क्या वह वितरिका की तरह अपना एक अलग अस्तित्व बना पाता है ? या उपनदी की भाँति अपनी मातृ-धारा से वापस जा मिलता है ? या फिर क्लान्त होते हुए जड़मत हो जाता है ?