गुरु की व्युत्पति करते हुए कहा गया है- गारयति ज्ञानम् इति गुरुः । गुरु उसे कहते हैं जो ज्ञान का घूंट पिलाये। ज्ञान का मानव जाति के लिए जो महत्व है उसे बतलाने की आवश्यकता नहीं। जीवन में गुरु के स्थान को ईश्वर से भी ऊंचा बताया गया है। क्योंकि गुरु ह...
गुरु की व्युत्पति करते हुए कहा गया है- गारयति ज्ञानम् इति गुरुः । गुरु उसे कहते हैं जो ज्ञान का घूंट पिलाये। ज्ञान का मानव जाति के लिए जो महत्व है उसे बतलाने की आवश्यकता नहीं। जीवन में गुरु के स्थान को ईश्वर से भी ऊंचा बताया गया है। क्योंकि गुरु ही वह व्यक्ति है जो ईश्वर से हमारा परिचय कराते हैं। परमात्मा सब जगह है, पर उनको देखने की दृष्टि एक गुरु ही दे सकता है। गुरु ईश्वर का स्वरूप है, जो जीवन में आपके दर्पण का काम करते है । सदगुरु जो स्वयं ब्रह्म है, निराकर है, निर्विकार है, वही ब्रह्म जगत कल्याणार्थ के लिए मातृ भाव मे साकार हो कर पथ प्रदर्शित करते है । जो हमे जीवन का हेतु समझाए, मार्ग दिखये की हम जीवन के लक्ष्य को पाने के काबिल बने, वह “गुरु ही है। गुरु हमे हमारे अन्दर छिपी हुई प्रतिभा से परिचत कराते है। जब सच्चे गुरु मिलते है, तब हमें सच्चा आत्मज्ञान प्राप्त होता है। गुरु कृपा विधाता का वरदान है।