परम का अर्थ है ऊचा या महान , अपने नाम के अर्थ के अनुसार ही यह पुस्तक मानव चेतना को ऊचां उठाने अर्थात मानव को चेतना के तल पर जगाने की बात करती है | मनुष्य को जागरूक बनाने के तमाम अध्यात्मिक तरीके बताती है | मुझ लेखक का यह प्रयास है कि किसी भी रूप म...
परम का अर्थ है ऊचा या महान , अपने नाम के अर्थ के अनुसार ही यह पुस्तक मानव चेतना को ऊचां उठाने अर्थात मानव को चेतना के तल पर जगाने की बात करती है | मनुष्य को जागरूक बनाने के तमाम अध्यात्मिक तरीके बताती है | मुझ लेखक का यह प्रयास है कि किसी भी रूप में मनुष्य को चेतना के तल पर ऊचा उठाना ही चाहिए, इसलिए इस पुस्तक में मैंने केवल सलाह दी है कोई नियम नहीं दिया, क्योंकि मैं मनुष्य को उसकी चेतना में स्वतंत्र करना चाहता हूँ , नियम देकर बांधना नही चाहता | मेरा अपना यह मत है कि मनुष्य को शारीरिक तल पर तो अनुशासित होना ठीक है परन्तु चेतन्य तल पर उसे स्वतंत्र होना चाहिए | मनुष्य को सत्य जानना चाहिए ताकि वह स्वतंत्र हो सके और उसे जाग्रित होना चाहिए ताकि वह गलत न कर सके और आनन्द में जी सके | यह पुस्तक मनुष्य को जाग्रित बनाने के साथ-साथ प्रेम को प्राथमिकता देते हुए कहती है कि "प्रेम सब धर्मो से उत्तम है |" प्रेम में जीकर ही तुम परमात्मा को और परमात्मा तुम्हे उपलब्ध हो सकता है | मनुष्य के मन में चलते रहने वाले अध्यात्मिक व वैज्ञानिक तमाम सवालों के जवाव देते हुए यह पुस्तक मृत्यु, सन्यास , आत्मा, परमात्मा, दुष्टात्मा और तमाम उच्चतम गुण जैसे- दया, क्षमा, प्रेम, आनंद आदि विषयों पर चर्चा करती है और मनुष्य को आत्मज्ञान के लिए अग्रसर करती है, तो वही साधना, योग, आसन, प्राणायाम, भोजन, ध्यान व समाधि जैसे विषयों पर भी प्रकाश डालती है | अंत में यह पुस्तक मनुष्यों के सम्बन्ध तथा परिवर्तित संसार में अपरिवर्तनशील तत्व का ज्ञान देने वाले गुरु कौन है, यह बताते हुए, कुछ मार्मिक कविताओ के साथ समाप्त होती है |