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मैंने अपने पूरे जीवन में जो भोगा है। उस सब से यही जाना है। और एक निचोड़ निकाला है, की इस तरह की जितनी भी मानसिक बीमारियां होती है, उनके कारण तो अनेक हो सकते है। परंतु इलाज केवल एक ही है। और वो है ‘’प्रेम’’ और ‘’होश’’ है। होश को हम ऐसे तो प्राप्त नहीं कर सकते परंतु प्रेम को तो हम आदान प्रदान भी कर सकते है। मैंने इस बात को चालीस साल पहले जब मोहनी बीमार थी तब भी महसूस किया था। और आज जब ये लिख रहा हूं तब भी इसे महसूस कर रहा हूं। फिल्म एक अलग माध्यम है। परंतु उपन्यास में एक स्वतंत्रता होती है पाठक के मन में वह अपनी कल्पना के पंखों पर बैठ कर एक आनंद सागर में विचरण कर सकता है। जैसे आपकी मनोदशा और मेरी मनोदशा एक समान नहीं है। आप को और मुझे जो पढ़ने को दिया जायेगा वह समय और स्थान के अनुसार भिन्न प्रभाव दिखलायेगा। पाठक शायद इतने लम्बें अंतराल के बाद इस कहानी के कुछ पहलुओं से वंचित रह सकते है। क्योंकि आज का युवा समझ ही नहीं सकता की 1978 में जब हम एक संदेश पत्र के द्वारा भेजते थे तो उसका जवाब आने में कम से कम 15 दिन लग जाते थे। परंतु वो प्रेम वो दर्द वो शिकायत जो शब्दों में जब वहां पहुंचती थी। मनसा-मोहनी दसघरा