अंतोगत्वा, यह किताब अलग-अलग कहानीयो का बो मेल है जो समाज के उस सत्य को दरसाता है जिस सच से वाकिफ तो सब है लेकिन रूबरू होना कोई नही चाहता। कुछ कहानियां जैसे कलकत्ता से लाहौर, निकाह, हकीकत आदि अपने सिरसक में ही अपनी गहराइयां बया कर देती है। किताब मे...
अंतोगत्वा, यह किताब अलग-अलग कहानीयो का बो मेल है जो समाज के उस सत्य को दरसाता है जिस सच से वाकिफ तो सब है लेकिन रूबरू होना कोई नही चाहता। कुछ कहानियां जैसे कलकत्ता से लाहौर, निकाह, हकीकत आदि अपने सिरसक में ही अपनी गहराइयां बया कर देती है। किताब में दरसाई हुई कहानी भलेही पूर्ण तरह बस्ताबिक न हो पर इनमे समाज की बास्ताबिकता पड़ने वाला साफ-साफ देख सकता है। मेरी कहानी सायद समाज के काफी सारे समझदारो को नपसंद होगी और होनी भी चाहिए क्योंकि अगर ये समाज मेरी कहानियां बारदाश कर सकता तो मुझे ये कहानी लिखने की जरूरत न होती। मेरा ये दावा तो नही की आपको ये कहानी आपकी मनचाही लगे पर इन्हें पड़ते वक्त हर एक किरदार की जिंदगी आपको अपनी जिंदगी मे जिंदा नजर आएगी इस बात की तसल्ली मेरी रही। जहा मेरी कुछ कहानियां जैसे मैं और मेरी हसी, समझदारी, आदि हिंदू मुस्लिम के बीच की दूरियों को बया करती है वही दूसरी ओर, एक ही समझ की, जिंदा लाश आदि समाज मे होने वाले मर्द और औरत के उस बेधभाव को बयान करती है हो हर रोज हमारी निघाओं के सामने होता है और लोग जिसे नजरंदाज करने मे माहिर से हो गए है।