एक मुलाकात क्या कुछ नहीं कर सकती ये मुझसे बेहतर कौन समझ सकता है किसी इंसान से मेरी एक रात की मुलाकात ने मेरे रंग-रूप व गुणधर्म सहित सारी क्रिया-प्रतिक्रिया को इतना बदल दिया कि मैं सूरज मौर्य से प्रिय कुमार "प्रियांश" हो गया सच मे ये मुलाकात जितनी ...
एक मुलाकात क्या कुछ नहीं कर सकती ये मुझसे बेहतर कौन समझ सकता है किसी इंसान से मेरी एक रात की मुलाकात ने मेरे रंग-रूप व गुणधर्म सहित सारी क्रिया-प्रतिक्रिया को इतना बदल दिया कि मैं सूरज मौर्य से प्रिय कुमार "प्रियांश" हो गया सच मे ये मुलाकात जितनी खतरनाक थी,उतनी जरूरी भी। इस मुलाकात ने मेरा सब कुछ लूटा, एक तरह से अतीत व जिस्म को छोड़कर मेरा सब कुछ खो गया,मगर मेरे अंदर पड़े इस डाके ने मेरे अंदर के कई असाध्य राज़ उजागीर किए। तुम्हें एक आवाज मेरे अंदर छुपा एक ऐसा ही,असाध्य रहस्य है। भौतिक व आध्यात्मिक प्रेम में संतुलन बना कर चलती ये किताब वक्त-वक्त पे अध्यात्म को छोड़कर भौतिकता का समर्थन करने लगती है। कवि ने 21वी सदी के इश्क को,वास्तविक सुंदरता व अति अनिवार्यता के गलियारों से गुजारे बिना समग्र संसार के सामने परोसा है,यह किताब उन सभी इश्कबाजों को उनकी ही प्रेम कहानी सुनाते हुए आगे बढ़ती है। जो इश्क की उत्पत्ति,उसका विकास, उसका भू पृष्ठ जाने बिना,सौंदर्य के तेज से तेजहीन हो गए। 21वीं सदी में पैदा हुआ 19 बरस का टीनयुक्त युवा,इश्क व प्रेम को जिस दृष्टिकोण से देखता है,ठीक वैसा ही दृष्टिकोण इस किताब में एकत्र किया है । ओ चुलबुली सी आंखें,प्रकाशमय तेरा चेहरा,लालिमा युक्त गोरा गाल,ओ प्रभात सी ताजगी की पूरे बदन की,ऐसे स्वर्ग-जन्नत -जाम-जहान के अंदर जब 19 की जवानी इश्क पे बहस करने उतरती है तो,तुम्हें की सारी मुक्तक, सारी कविता तथ्य बनती हैं। संबंधों को लेकर हुई गलतफहमी ने मुझे, मुझे नहीं छोड़ा, प्रिय कुमार बनाया। प्रिय कुमार उस रात के,उस मुलाकात के, उस बात को कंठस्थ करने वाले अनोखे पथ प्रकाशक का उम्र भर आभारी रहेगा