वन्यप्राणी प्रसंग मध्य प्रदेश में वैज्ञानिक वन्यप्राणी संरक्षण केलिए किये गये प्रारंभिक प्रयासों का संग्रह है जो एक वनाधिकारी के संस्मरणों के संग्रह के रूप में प्रस्तुत की गयी है। ये कहानियाँ, 1968 से 1985 - 18 साल की अवधि के दौरान, लेखक के मैदानी...
वन्यप्राणी प्रसंग मध्य प्रदेश में वैज्ञानिक वन्यप्राणी संरक्षण केलिए किये गये प्रारंभिक प्रयासों का संग्रह है जो एक वनाधिकारी के संस्मरणों के संग्रह के रूप में प्रस्तुत की गयी है। ये कहानियाँ, 1968 से 1985 - 18 साल की अवधि के दौरान, लेखक के मैदानी अनुभवों पर आधारित हैं। आज मध्यप्रदेश, भारत में वन्यजीव संरक्षण का प्रणेता और पथप्रदर्शक माना जाता है, ये रोचक सत्य-कथायें हमें बताती हैं कि प्रदेश ने यह मुकाम कैसे हासिल किया है। लेखक ने वन्यजीव प्रबंधन के क्षेत्र में किये गए कुछ ऐतिहासिक प्रयोगों में हिस्सा लिया था जो आगे चल कर वन्यप्राणी संरक्षण केलिए अत्यंत महत्पूर्ण साबित हुईं। इन्ही अनुभवों की बुनियाद पर कई वर्ष बाद किये गए प्रयासों में सफलता मिली वर्ष 2011 में गौर को बांधवगढ़ टाइगर रिज़र्व में पुनर्वसित किया गया और 2015 में कान्हा से सख्त जमीन वाले बारहसिंघा को सफ़लतपूर्वक पकड़कर वन विहार, भोपाल में स्थानांतरित किया गया और उन्हें सतपुरा टाइगर रिज़र्व में जहाँ से वे लगभग 130 वर्ष पूर्व विलुप्त हो चुके थे, पुनः बसाया जा सका। पाठकों को यह पुस्तक जरूर पसंद आयेगी।