वर्णों का काला सच नामक बुक में मैंने सांसारिक परिदृश्यों एवं घटनाओं को प्रस्तुत करने का प्रयास किया है, जैसा कि समाज वर्णों और जाति एवं मजहब के नाम पर कमजोर असहाय एवं निम्न तबके और शोषित लोगों का दुरुपयोग एवं उनके मान और सम्मान को नजर अंदाज कर दिय...
वर्णों का काला सच नामक बुक में मैंने सांसारिक परिदृश्यों एवं घटनाओं को प्रस्तुत करने का प्रयास किया है, जैसा कि समाज वर्णों और जाति एवं मजहब के नाम पर कमजोर असहाय एवं निम्न तबके और शोषित लोगों का दुरुपयोग एवं उनके मान और सम्मान को नजर अंदाज कर दिया जाता है जिसके कारण कुछ लोग निराशा और अंधकार के गर्त में चले जाते हैं और वो शिक्षा दीक्षा के अभाव में खुद दीन और कमजोर समझने लगते हैं और लोग उसे भाग्यवाद और ईश्वरवाद समझकर जीवन पर निम्न स्तर का जीवन जीने को मजबूर हो जाते हैं इसलिए जनहित और समरसता की आवश्यकता को देखते हुए इसे लिख रहा हूं अगर कोई इससे असहमत होता है तो ये उसका निजी फैसला हो सकता हैं।