यह कहानी शुरू होती हैं गांव के एक साधारण व्यक्तित्व वाले रामू काका के गरीब परिवार से इस परिवार में कुल पांच सदस्य होते हैं। रामू काका मजदूरी करते हैं और अपने परिवार को चलाते हैं रामू काका की पत्नी रामवती एक संस्कारी महिला हैं।
- Total Chapters: 3 Chapters.
- Format: Stories
- Language: Hindi
- Category: Children's & Young Adult
- Tags: मलखान सिंह पंथी,
- Published Date: 23-Aug-2023
गोपाल और उसकी संगत
कुसंगति का प्रभाव
जीवन में कुसंगती का प्रभाव
**9 *मेरी आत्म कथा "परिश्रम का फल है सफलता"***** ***********************
भारत का हृदय स्थल कहे जाने वाले मध्यप्रदेश के विदिशा जिले के एक छोटे से गांव बींज में एक साधारण परिवार में मेरा जन्म 02 अगस्त सन 1991 में हुआ हमारा परिवार मेरे जन्म के पूर्व से इस गांव में रहता था। हमारे परिवार की आर्थिक स्थिति सम्पूर्ण गांव में सबसे खराब थी या हम यह कहे कि हमारे परिवार के पास भरण पोषण करने के लिए पर्याप्त संसाधन उपलब्ध नहीं थे तो यह कोई बड़ी बात नहीं है इस हमारे परिवार के मुखिया मेरे पिता जी
श्री बाबू लाल कोरी और
माता जी श्री मती नर्वदी बाई यह दोनो ही दंपत्ति शिक्षित नहीं थे। परिवार में मेरे माता पिता और 1 भाई और 5 बहनें और थी कुल मिलाकर हम 7 भाई बहन थे ।इस तरह कुल मिलाकर इस परिवार में नौ सदस्य थे माता -पिता अशिक्षित थे और परिवार के आर्थिक हालात ठीक न होने के बाद भी बस मन में एक छोटा सा सपना था की अपनी संतान को किसी तरह से शिक्षा दिलाकर संतान का भविष्य सुधार करना चाहते थे।इसके लिए अपने बच्चो को गांव के ही सरकारी स्कूल में प्रवेश दिला दिया परन्तु अभी इनकी परेशानियों की यह शुरुआत थी बच्चे स्कूल जाने लगे परिवार के भरण पोषण के लिए मजदूरी एक मात्र विकल्प था बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ने जाते दंपत्ति मजदूरी करके अपने जीवन में खुश थे की हम नही पढ़ लिख सके कोई बात नही पर अब अपने बच्चो को कम से कम शिक्षा प्राप्त हो रही है इस बात की तस्सली थी परंतु शायद तक़दीर इस परिवार की परीक्षा लेना चाह रही थी अचानक से हमारे पिता जी की आंखों में कुछ कचरा चला गया जिससे पिता जी की हालत दिन प्रतिदिन गंभीर होती जा रही थी इस समस्या में मां के गहने और परिवार के पास जो कुछ भी बचाया हुआ धन था वह पिता जी के उपचार में खर्च हो गया इस समस्या के कारण मेरे बड़े भाई को अक्सर पिता जी के साथ इलाज के लिए गांव से दूर शहर जाना पड़ता और पिता जी का निरंतर इलाज़ चलता रहा और भाई को पढ़ाई लिखाई छोड़नी पड़ी। पिता जी की आंखे खराब होने से अब मजदूरी भी नही कर सकते थे इस कारण परिवार की जिम्मेदारी मेरे बड़े भाई और मां पर आ गई हमारे घर में खाने के लिए कुछ भी नहीं था मेरे बड़े भाई गांव की चक्की से 2 -2 किलो ग्राम आटा खरीद कर लाते में अभी छोटा था और मिडिल स्कूल में पहुंच चुका था। में कक्षा 8 में था तब आठवीं कक्षा बोर्ड परीक्षा हुआ करती थी मेरे शिक्षक श्री धनराज पचौरी मेरे पिता जी से मिले और बोले आपका बच्चा पढने में अच्छा है आप 1500 रूपये दे दो तो हम आपके बच्चे को पास करा देंगे जिस परिवार के पास खाने के लिए भोजन की व्यवस्था न हो वो भला इतने पैसे कहा से देते और घर आकर उदास होकर बैठ गए घर में पिता जी को उदास देख कर उनकी उदासी का कारण जानने का प्रयास किया पहले तो वह आनाकानी करने लगे लेकिन बहुत जिद करने पर बोले आज तेरे कक्षाध्यपक मिलने आए थे और उन्होंने कहा 1500 सौ रुपए नही दिए तो वह तुझे फेल कर देंगे मेने अपने पिता जी को सांत्वना देते हुए कहा पिता जी आप चिंता मत करो में दिन रात मेहनत से पढ़ाई करूंगा और पास हो जाऊंगा और फिर परीक्षा का समय आया मेरे पिता जी के कानो में आज भी मेरे शिक्षक द्वारा बोले गए शब्द गूंज रहे थे उन्हें रह रह कर यही चिंता सता रही थी कही मेरी गरीबी की सजा मेरे बेटे को न सहनी पड़े कहीं पचौरी जी मुझे सच में फेल न कर दे यही डर उन्हें बार -बार सता रहा था। परन्तु हम रोज परीक्षा देने जाते और पिता जी को बताते की परीक्षा अच्छी रही आप देखना में जरूर पास हो जाऊंगा।हमारी परीक्षा समाप्त हो गई लगभग एक माह बाद हमारा परीक्षा परिणाम घोषित हुआ हम परिणाम देखने स्कूल पहुंचे हमारी खुशी का ठिकाना न रहा मेने कक्षा 8 की परीक्षा में 46 प्रतिशत अंक प्राप्त कर परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी और इतना ही नहीं अपने विद्यालय में मैने प्रथम स्थान प्राप्त किया था अपने बेटे की इस सफलता पर पिता जी को बहुत खुशी हुई और अपने मोहल्ले में मगज के लड्डू मिठाई के रूप में बांट दिए।
अब इसके बाद मुझे अपनी पढ़ाई करने के लिए गांव से बाहर जाना था परंतु परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी मेरा आगे पढ़ना लगभग मुश्किल सा लग रहा था परन्तु कहते हैं क़िस्मत में जब कुछ लिखा हो तो घर चल कर आ जाती है।हम उदास बैठे हुए मेरे आगे की शिक्षा प्राप्त करने हेतु उपाय करने विचार कर रहे थे की तभी अचानक मेरे पिता जी के मित्र श्री पन्नालाल जी हमारे घर पर घूमने के लिए आ गए और उन्होंने मेरे पास होने की बधाई दी और मेरे सर पर हाथ रख कर आशीर्वाद दिया पर हम सब तो आगे की पढ़ाई कैसे हो इस बात को लेकर परेशान थे तब उन्होंने इस परेशानी का उपाय हमे बताया और सरकार द्वारा चलाए जा रहे छात्रावास की जानकारी दी अब इस जानकारी से हमे एक उम्मीद की किरण दिखाई दी ।
और अगले ही दिन हम छात्रावास में प्रवेश पाने के लिए उन दादा जी की साथ शमशाबाद आ गए यहां पर हमे एक लंबी सूची थमा कर पिता जी को बोल दिया गया की यह सब दस्तावेज आप ला दो तो हम आपके बच्चे को छात्रावास में प्रवेश दे देंगे हमारे पास उन दस्तावेज की सूची वाले कोई दस्तावेज न थे अब हमारे सामने फिर आर्थिक समस्या खड़ी थी हमारे घर में पीतल का एक गगरा था हमने उसे शमशाबाद जाकर बैंच दिया और उससे हमें 700 रूपये मिले उन पैसौ से हमने आय, मूल, निवासी प्रमाण पत्र बनवा लिए जाति प्रमाण पत्र स्कूल से पहले ही मिल चुका था हमने बहुत मेहनत करके सारे दस्तावेज बनवा लिए थे अब हम प्रवेश के लिए शासकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय शमशाबाद में पहुंचे किसी तरह से प्रवेश फार्म प्राप्त कर जमा किया पर ये क्या छात्रावास से फॉर्म वापस लौटा दिया और बोला प्राचार्य के हस्ताक्षर करा कर दो अन्यथा आपको प्रवेश नहीं मिल पाएगा हमारे शमशाबाद के प्राचार्य श्री के सिंह साहब थे उन्होंने पहले तो हस्ताक्षर करने से इंकार कर दिया परन्तु बाद में बोले जाओ नाश्ता लेकर आओ हम दस्तखत कर देंगे और इस तरह मुझे विद्यालय में प्रवेश मिल गया ।
पर मेरी समस्या अभी खत्म नहीं हुई थी मेने शुल्क मुक्ति के लिए आवेदन दिया था जो की स्वीकार नहीं किया गया इस कारण मेरी फीस जमा करना अभी शेष था मेरे पिता जी ने मेरी बुआ जी से पैसे उधार मांगे उन्होंने बड़ी मुश्किल से 950 रूपये जो सन 2009 में मेरी प्रवेश शुल्क थी बड़ी मुश्किल से जमा करा दी अब हम निरंतर विद्यालय में अध्ययन करते मेरे पास विद्यालय की गणवेश नही थी इस लिए हमे बिना गणवेश बाली लाइन में खड़ा किया जाता और फिर दंडित किया जाता यह क्रम लगातार इसी तरह चलता रहा फिर एक दिन अचानक हमारे कक्षाध्यापक महोदय ने कहा परीक्षा फॉर्म भरना है उसकी फीस जमा करनी होगी अन्यथा आपको परीक्षा में शामिल नहीं किया जाएगा फिर हम पैसे मांगने घर पर आ गए लेकिन हमारे परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी ख़राब थी के हम 750 रूपये की परीक्षा फ़ीस चुकाने में सक्षम नहीं थे फिर मम्मी ने अपने गले की चांदी की चैन बैंच कर मुझे परीक्षा फॉर्म भरने के लिए 750 रूपये दिए और हमने अपनी परीक्षा फॉर्म की फ़ीस इस तरह चुका दी फिर एक दिन अचानक हमारे विद्यालय में सामाजिक विज्ञान के लिए माध्यमिक शिक्षक के पद पर श्री बिंद कुमार पटेल जी नियुक्त होकर हमारे विद्यालय में उपस्थित हुए हम सब आश्चर्य भरी नजरों से उन्हे देख रहे थे उसका मुख्य कारण यह था कि पटेल सर सौ प्रतिशत दृष्टिहीन थे। दिन भर विद्यालय में उपस्थित रहे उसके बाद अब छुट्टी के बाद घर वापसी का समय था सभी स्कूल से अपने -अपने घर जा रहे थे।मेने कोतुहल बस पटेल सर से पूछा सर आप कहा जाएंगे चलो में छोड़ देता हूं पटेल सर ने कोई जवाब न दिया संभवत अभी रहने का कोई ठिकाना न था मेने फिर से कहा सर आप हमारे साथ हमारे छात्रावास में चलिए और सर को अपने साथ ले कर आ गए पर मन में डर भी लग रहा था की कही अधीक्षक सर नाराज न हो जाए पर आदरणीय श्री महाराम सर जो हमारे अधीक्षक थे उन्होंने पटेल सर के लिए छात्रावास में सारी व्यवस्था करा दी और अब में बहुत खुश था क्युकी मुझे अब सर का साथ मिल चुका था सर ने मुझे टयूशन के लिए भेजा पर बार बार ट्यूशन टेस्ट में फेल हो रहा था सर को संदेह हुआ उन्होंने सवाल हल कर खुद सुना क्युकी सर देख नही सकते थे और सुनने के बाद सवाल को सही पाया और तुरंत 1 माह की टयूशन फीस जमा कर ट्यूशन न जाने के लिए बोल दिए बोले आज से तुम अपने रूम पर ही अध्ययन करो । फिर रूम पर ही अध्ययन कर परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी परीक्षा के दौरान सर मुझे रोज चाय नाश्ता के लिए पैसे देते और बोलते भूंखे पेट पेपर मत देना हमारी 10 th परीक्षा हो चुकी थी मेरा परिणाम 70 प्रतिशत रहा जो की मेरे लिए उस समय 2008 में बहुत बड़ी बात थी मेरा परिणाम संतोषजनक रहा फिर एक दिन मध्य प्रदेश के तत्कालीन वित्त मंत्री श्री राघव जी हमारे विद्यालय में आए और मुझे पुरुस्कार स्वरूप 2 जोड़ गणवेश प्रदान किये। इस तरह अब मेरे पास गणवेश भी थी एक दिन प्रार्थना सभा के दौरान में लाइन में सबसे आगे खड़ा हुआ था कुछ मेरे मुंह में चला गया और मैने बही पर थूक दिया ये सब मेरे शिक्षक श्री बृजमोहन साहू जी देख रहे थे वह तुरंत मेरे पास आए और मेरे इस अनुशासनहीनता के दंड स्वरूप गाल पर एक थप्पड़ जड़ दिये मुझे बहुत बुरा लगा और प्रार्थना के बाद में क्लास में न जाकर अपने रूम में जाकर लेट कर रोने लगा पर ये क्या अभी तक में जिन शिक्षक को बुरा समझ रहा था वो जब क्लास में पहुंचे और वहा मुझे न पाकर सारी क्लास को छोड़कर मेरे पास रूम में आए और मुझे हाथ पकड़ कर खींच कर क्लास में ले आए बस फिर मन में एक ही विचार था में कितना गलत समझ रहा था सर को मेरी पढ़ाई की कितनी परवाह हुई सारी व्यवस्था छोड़कर सर ने मुझे याद रखा
और हम सब पढ़ाई में लग गए।अब हमारे पटेल सर की शादी की चर्चा होने लगी में बहुत खुश था की अब मुझे खाना बनाना नही पड़ेगा मैडम आ जाएंगी तो पर यह क्या में एक अबोध बालक मुझे क्या पता था में जिसके आने की खुशी मना रहा था वो मुझे मेरे सर से दूर कर देगी मैडम ने आते ही 1,2 महीने तो हमे भोजन दिया फिर लड़ाई झगड़ा शुरू कर दिया और इस तरह 12 थ पास होने के बाद मुझे सर से दूर होना पड़ा में बापिस अपने गांव आ गया यही से मेने 2011 में शिक्षक भर्ती परीक्षा दी जिसमे मुझे 108 अंक प्राप्त हुए अब तो खुशी का ठिकाना न रहा। लेकिन ये क्या कुछ समय बाद मुख्यमंत्री जी ने घोषणा कर दी की बिन डी एड बी एड के शिक्षक भर्ती में नहीं लिया जाएगा इस तरह हमारी खुशी एक बार फिर हमसे छिन गई आंखों में आंसू थे और दिल में क्रोध क्या करू अब में येसी जगह पर खड़ा था जहां मुझे कोई रास्ता दिखाई नही दे रहा था।फिर मरे हुए मन से स्नातक में प्रवेश ले लिया 2013 में प्रथम श्रेणी में स्नातक करने के बाद जानकारी मिली के व्यापम द्वारा बी एड प्रवेश परीक्षा आयोजित की जा रही है फिर क्या बिना किसी देरी के फॉर्म भर दिया और मुझे छात्रवृत्ति कार्यक्रम में 80000 रूपये में बी एड करने का मौका मिल गया लेकिन मेरे लिए तो यह राशि भी बहुत बड़ी थी मेने पटेल सर से पुनः संपर्क किया और सारी स्थिति स्पष्ट रूप से बताई सर ने मुझे 15000 रूपये दिए जिसमें 13000रूपये मेने उधार उठा कर अपनी बी एड की प्रथम वर्ष की फीस जमा कर दी और संजय गांधी कॉलेज प्रबंधन से बात कर पढ़ाई के साथ प्राइवेट रिलाइंस पेट्रोल पंप पर गाड़ियों में पेट्रोल डीजल भरने का काम शुरू कर दिया जिसमे मुझे 7000 महीने की वेतन मिलता आधे पैसे से अपना खर्च चलता और कुछ पैसे जोड़ कर फीस के लिए उधार पैसे चुका दिए बाद में स्कॉलरशिप के लिए बात की तो उन्होंने मुझे 56000 रूपये की स्कॉलर दिला दी जिससे मेने बी एड डिग्री प्राप्त कर ली अब मेरा एक ही सपना था शिक्षक बनना में बार- बार सरकारी नौकरी के लिए फॉर्म भरता और परीक्षा के लिए छुट्टी मांगता इस वजह से मेरी पेट्रोल पंप की नौकरी भी छूट गई अब में बेरोजगार था में फिर गांव आ गया कोचिंग क्लास लगाने लगा लेकिन गांव में सभी लोग मेरा यह कहकर मज़ाक उड़ाते अच्छे- अच्छे पढ़े लिखे भटकते फिर रहे हैं बैगों में नोट भरकर फिर भी सरकारी नौकरी नही मिलती इसे नौकरी चाहिए वो भी इन कागज़ के टुकड़ों से इस तरह बोलकर मेरा मजाक बनाते ये सब मेरे दिल को बहुत चोट पहुंचाता और इस वजह से में फिर एक बार भोपाल काम की तलाश में आ गया और मुझे डीबी सिटी मॉल में सिनेमा में बॉक्स ऑफिस में नौकरी मिल गई पर यह काम काफी कठिन था कभी नाईट ड्यूटी तो कभी डे शिप्ट इस तरह चलता रहा और और यहां पर मेरे जीवन में एक बहुत ही सुन्दर और शिक्षित लड़की से मुलाकात हुई और यह मुलाकात दोस्ती में बदल गई फिर मुलाकातों का यह सिलसिला यूं ही चलता रहा और यह दोस्ती प्यार में बदल चुकी थी हम एक दूसरे को अपनी जिंदगी से अधिक चाहने लगे इस तरह हमारी यह प्रेम कहानी शुरू होती है उसका नाम में यहां पर बता सकता हूं परन्तु में नहीं चाहता की उसको मेरी वजह से कोई समस्या उत्पन्न हो और फिर प्यार तो प्यार होता है में उसके जीवन की समस्या कम तो कर सकता हूं परन्तु उसको बदनाम कैसे होने दे सकता हूं इस लिए में आज भी उसका नाम गुप्त ही रखना चाहता हूं। में चाहता तो अपनी प्रेम कहानी को छिपा भी सकता था पर मेरी आत्म कथा मेरी आत्मा के बिन शायद अधूरी रह जाती और यह मुलाकातों का सफ़र यूं ही चलता रहा समय साथ हमारी कहानी चलती रही मॉल की लिफ्ट में ड्यूटी जाते वक्त उससे रोज़ थोड़ी गुप्तगु होती और और इस तरह 5 मिनट की मुलाकात होती लेकिन इन 5 मिनट में हम अपने जीवन के सारे दुःख दर्द एक दूसरे के साथ साझा करते और धीरे धीरे यह दोस्ती प्यार में बदल गईं अब हम जब भी समय मिलता मिलने की कोशिश करते में नीचे लोअर बॉक्स ऑफिस में मूवी टिकिट सेल करता मेरी प्रेमिका मेरे लिए टिफिन लेकर आती हम बहुत खुश थे में अपना सारा दुःख दर्द इसके प्यार को पा कर भूल चुका था हैं भोपाल के आस पास हमेशा साथ साथ घूमने जाया करते इस तरह हम सांची स्तूप सीहोर गणेश मंदिर कंकाली मंदिर रायसेन किले पर तो कभी दरगाह पर
शोर्य स्मारक भोजपुर शिवमन्दिर हलाली डैम बड़ा ताल लेक व्यू पर पार्कों में बैठ कर अपना समय व्यतीत करते यह समय मेरी ज़िंदगी का सबसे अच्छे समय में गिना जा सकता था लेकिन कहते हैं क़िस्मत में जब दुःख लिखा हो तो क़िस्मत आपसे आपका सब कुछ छीन लिया करती हैं मेरी प्रेमिका और में दोनो अलग जाति के थे हमने अपने अपने परिवार में शादी के लिए बात की मेरे घर बालों ने कहा हमें कोई परेशानी नहीं है तुम जिसे चाहो अपने जीवन साथी चुन सकते हो में खुश हो गया पर जब दूसरे दिन अपनी प्रेमिका से मिला और उससे इस बारे में बात की पहले तो उसने कुछ नहीं बताया वो 2 दिन तक गुमसुम रही लेकिन फिर उसने मुझे बताया मेरे मम्मी पापा इस तरह दूसरी जाति में शादी करने के लिए तैयार नहीं होंगे बड़ी मुश्किल थी सामने हम एक दूसरे के बिन नही रहना चाहते थे उसने कहा भाग कर शादी कर लेते हैं मेने कहा ठीक है पर तुम्हे एक रिपोर्ट दर्ज करानी होगी में अपनी मर्जी से शादी कर रही हूं और मेरे परिवार द्वारा कोई भी समस्या खड़ी की जाय तो हमे सुरक्षा प्रदान की जाय और उनके खिलाफ़ कार्यवाही की जाय इसके लिय वह तैयार नहीं थी मेने कहा हम भाग कर कहा जाएंगे मां बाप का दिल दुखाकर क्या हम खुश रह पाएंगे मुझे लगता है नहीं और इस तरह हम दोनों अपनी जिंदगी के सच को जानते हुए भी साथ चलते रहे परन्तु कुछ समय बाद मेरे परिवार बालों ने मेरी शादी अपनी ही समाज में तय करदी और समय बीतता गया 7 दिसम्बर 2020 मेरी शादी दीपा शाक्य नाम की लड़की से करदी गई मेरी प्रेमिका अभी भी मेरी शादी में आई और मुझे मेरी ज़िंदगी का अंतिम तोहफ़ा दिया उसके बाद फिर हम कभी नहीं मिले इस तरह में जिंदगी में एक बार फिर जीत कर भी हार चुका था क्युकी में छोटी जाति का था इस जातिवाद की वजह से मुझे अपना प्यार खोना पड़ा में आज भी जब अपने प्यार को याद करता हूं तो तो पड़ता हुं और लगता है की में उससे दूर रहकर क्यूं जिंदा हूं कई बार आत्म हत्या का विचार मन में आता पर में सोचता हु यदि में आत्म हत्या करूंगा तो ये मेरे मां बाप और शिक्षकों की शिक्षा का अपमान होगा जो में कभी नही कर सकता,इस प्रकार मुझे जो कुछ भी अच्छा लगा इस दुनियां ने मुझसे छीन लिया और में फिर चुपचाप इसे अपनी नियति समझकर फिर अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर हो गया और इस तरह में बार बार नौकरी के लिए फॉर्म भरता और अपनी प्राइवेट लिमिटेड सिनेपोलिस कंपनी के प्रवंधक से छुट्टी लेता इस वजह से एडमिन स्टाफ के साथ कहा सुनी भी होती और मेरे अंदर एक और कमी यह थी की ईमानदारी का नशा था तो जो लोग ऊपरी कमाई करते थे उनके लिए भी में खतरा बनता जा रहा था वह सब मुझे जॉब से निकलवाने के फिराक में रहते फिर एक दिन मेरी मध्य प्रदेश शिक्षक पात्रता परीक्षा का दिन आया मेने छुट्टी मांगी मुझे प्रबंधक श्री विशाल राजपूत जी ने यह कहकर छुट्टी देने से इंकार कर दिया क्या मजाक बना रखा है जब देखो पेपर -पेपर नौकरी करनी है तो नौकरी करो या फिर रिजाइन देकर पेपर देते रहो वो अपनी जगह सही थे और में अपनी जगह पर मुझे भी गुस्सा आया और रिजाइन लिखकर में परीक्षा देने जा रहा था में अपने जीवन में पांच मित्रों को अहम हिस्सा मानता रहा हूं जिनमें से विष्णु धाकड़, कल्याण सिंह अहिरवार , जितेंद्र सिंह मेहर और राहुल रत्नाकर बंटी मोहने अपने मित्र राहुल रत्नाकर को अपने साथ ले गया परीक्षा केन्द्र पर की तूम फिल्म देख लेना तब तक मेरा पेपर हो जाएगा और फिर में परीक्षा केंद्र में चला गया ऑनलाइन परीक्षा थी 2 घंटे का समय था और 150 प्रश्न सॉल्व करना था अर्थात एक प्रश्न के लिए हमारे पास एक मिनिट का भी समय नहीं था परीक्षा संपन्न हुई परिणाम स्क्रीन पर था में अपने चारो ओर देख रहा था मेरे रूम में हम लगभग 100 लोग थे जो मुझे आश्चर्य से देख रहे थे क्योंकि मेने 150 में से 120 अंक प्राप्त कर लिया था जो की वह सब स्वीकार नहीं कर पा रहे थे।
रिज़ल्ट देखकर मेने अपने गुरु परम पूज्य श्री बिंद कुमार पटेल जी को अपने परिणाम की जानकारी दी उन्होंने कहा बेटा अब तुम्हारी नौकरी समझो लग गई। और में खुशी -खुशी रूम पर आ गया अब एक तरफ परिणाम की खुशी थी तो दूसरी तरफ प्राइवेट नौकरी छूटने का दुःख भी था परंतु अंगले ही दिन ऑफिस से एचआर मैनेजर का कॉल आया ड्यूटी पर आ जाओ और में फिर ड्यूटी पर था उसके बाद मुझे प्राइवेट नौकरी छोड़नी पड़ी और हमने नौकरी इस उम्मीद में छोड़ दिया की सरकारी नौकरी में सलेक्शन हो चुका है अगले महीने ज्वाइनिंग है । लेकिन
अचानक सरकार द्वारा भर्ती को कोरोना का काल बता कर 3 साल तक लटकाया गया हमने
और हमारे साथियों द्वारा मध्य प्रदेश के हर जिले में प्रदर्शन और ज्ञापन सौंपा सरकार पर भर्ती पूर्ण करने के लिए दबाव बनाया इस क्रम में हमारे उपर सरकार द्वारा एफआईआर और लाठी चार्ज की कार्यवाही की गई हमे और हमारे साथियों को अस्थाई रूप से कैद कर लिया गया 10 घंटे तक हम पुलिस की हिरासत में रहे फिर पुलिस द्वारा हमे बसों में भरकर शहर से दूर बाहर सुखी सेवनिया पर छोड़ दिया गया।
हमारे प्रदर्शनों को दवाने का प्रयास सरकार द्वारा किया गया पर हमारे साथियों ने हार नहीं मानी हम सब मिलकर लोक शिक्षण संचालनालय के सामने वर्षांत के समय मुर्गा बनकर प्रदर्शन किया उसके बाद तरह तरह से सरकार पर दबाव बनाने में सफल रहे और सरकार द्वारा मैरिट सूची जारी की गई इस तरह से भर्ती प्रक्रिया चरण दर चरण बढ़ती रही और 11 अक्तूबर 2021 का वो दिन हमारी जिंदगी का बहुत ही सुन्दर और आकर्षक दिन था जिस दिन हमारा सपना साकार हो चुका था और ज्वाइनिंग लेने के बाद अपने घर पर सब को मिठाई बांटी और राजगढ़ जिले के लश्करपुर हाई स्कूल में मेरी पहली पोस्टिंग हुई यंहा पर पूरी ईमानदारी और मेहनत से अपना फर्ज निभाया और 96प्रतिशंत परीक्षा परिणाम रहा इसके बाद सीएम राइज विद्यालय ओपन हुए इसमें हमे जाने का अवसर दिया गया और मेरा चयन सरदार पटेल उच्च माध्यमिक विद्यालय सीएम राइज करोंद भोपाल में हो गया मैं आज अपने जीवन में सफलता प्राप्त कर अपने विद्यालय सरदार पटेल करोंद भोपाल में अपने कर्त्तव्य पालन में समर्पित हूं में यहां पर कई प्रकार की अव्यवस्थाओं को देखता हूं तो मन करता है की विरोध करूं फिर अगले ही पल मन में विचार आता है जिन्हें कुछ करना होता है वो शिकायते नहीं किया करते बल्कि परिवर्तन लाते हैं और परिवर्तन के लिए खुद को तपस्या की भट्टी में तपाना पड़ता है बस इस तरह में रोज़ अपने घर से विद्यालय के लिए निकलता हूं और जब तक बच्चो के बीच जाकर उन्हें अपने मन का मंत्र सफलता प्राप्त करने और आदर्श जीवन जीने का सही मार्ग नही बता देता सुकून नहीं मिलता में जानता हूं में एक बहुत ही जिम्मेदार पद पर कार्यरत हूं मुझे शासन द्वारा समाज को आगे बढ़ाने का कार्य सौंपा गया है जिसे मैं पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ निभाने का निरंतर प्रयास करता रहता हूं आज में अपने विद्यालय में अपने विद्यार्थियों के साथ बहुत खुश हूं और ईश्वर से प्रार्थना करता हूं की मुझे इतनी शक्ति प्रदान करें की में अपने कर्त्तव्य से किंचित मात्र भी डगमग न होने पाऊं आज भी में अपने विद्यालय में एक शिक्षक के रूप में यहां पर बहुत खुश हूं बहुत खुशी होती हैं जब अपने छात्रों को आगे बढ़ते देखता हूं तो अपने जीवन के बीते हुए दिन याद आ जाते हैं और फिर ताजा हो जाति है जीवन की तमाम यादें और उन यादों से मिलती हैं अपने जीवन के पथ पर निरंतर अग्रसर होते रहने की प्रेरणा और में इस उम्मीद से अपनी सेवाएं आनंद और प्रसन्नता पूर्वक प्रदान कर रहा हूं के एक दिन मेरे विद्यार्थी भी जीवन में सफलता की कहानी स्वर्ण अक्षरों में अंकित करेंगे।
मेने कहीं पर सुना था लोग कहते हैं कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है।पर ये अधूरा सच है मेने जो अनुभव किया है वो सच है * "**जिंदगी में कुछ पाने के लिए कुछ खोना नहीं बल्कि कुछ करना पड़ता है**
रचयिता
स्वयं मलखान सिंह पंथी